भारत को बारम्बार 'लोकतंत्र की जननी' बतलाने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिस प्रकार से लोकसभा का चुनाव लड़ने के मार्ग में कांग्रेस के लिये अड़चनें पैदा कर रहे हैं उससे साबित होता है कि उनकी आस्था विरोधी दलों को समान परिस्थितियों में चुनाव लड़ने देने में कतई नहीं है। अधिक दुखद बात तो यह है कि केन्द्रीय निर्वाचन आयोग एवं अन्य संवैधानिक संस्थाएं भी इस ओर से आंखें मूंदे बैठी हैं। जैसे-जैसे विपक्ष मजबूत होता जा रहा है, भारतीय जनता पार्टी की सरकार ऐसी अनेक दिक्कतें विपक्ष के लिये खड़े कर रही है। कांग्रेस उसके मुख्य निशाने पर है जो लगातार मजबूत हो रही है। भाजपा की परेशानी का मुख्य सबब भी यही है। जिस तरह के कांग्रेस के नेतृत्व में मुम्बई के शिवाजी पार्क में इंडिया गठबन्धन की रैली सफल हुई है और भाजपा समेत कई दूसरे दलों के अनेक नेता कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं उससे सत्तारुढ़ दल की चिताएं बढ़ गयी हैं। उसके हमले भी कांग्रेस व उसके नेताओं पर बढ़ चले हैं।
नयी बानगी यह है कि सरकार के इशारे पर आयकर विभाग ने कांग्रेस के बैंक खाते सील कर दिये हैं जिसके कारण उसे चुनाव लड़ने में भारी दिक्कतें आ रही हैं। गुरुवार को अपने मुख्यालय में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस में कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने बतलाया कि किस प्रकार से पार्टी के आगे बड़ा वित्तीय संकट खड़ा कर दिया गया है। इसमें कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी के अलावा अजय माकन मौजूद थे। उन्होंने जानकारी दी कि 14 लाख रुपये वसूली के एक मामले के बहाने कांग्रेस के 210 करोड़ रुपये आयकर विभाग ने फ्रीज कर रखे हैं। यह मामला 2017-18 का है। इतना ही नहीं 30 साल पहले के एक मामले को लेकर उसे नोटिस दी गई है जब कोषाध्यक्ष सीताराम केसरी हुआ करते थे।
साफ है कि भाजपा कांग्रेस के लिये वह समान अवसर वाली स्थिति बनाने के हक में बिलकुल नहीं है जिसे 'लेवल प्लेईंग फील्ड' कहा जाता है और जिसे सभी दलों को उपलब्ध कराने का वादा केन्द्रीय चुनाव आयोग के मुख्य आयुक्त राजीव कुमार ने आम चुनावों की घोषणा करते वक्त किया था। वैसे भी लोकतंत्र का तकाज़ा, परम्परा एवं नियम यही है कि सभी दलों को एक जैसी परिस्थितियों में चुनाव लड़ने का वह न केवल अवसर प्रदान करे बल्कि वैसी स्थिति को निर्मित भी करे। पिछले कुछ समय से भाजपा ने एक सुनियोजित तरीके से चुनावी लड़ाई की असमान जमीन तैयार कर रखी है। अपनी 10 वर्षीय सत्ता में उसने भरपूर पैसा बटोरा है। कहा तो यह भी जाता है कि 2016 में लाई गई नोटबन्दी का यही उद्देश्य था। इसके माध्यम से जनता की जेब से पैसे निकलवा लिये गये। इतना ही नहीं, 2017-18 में जारी इलेक्टोरल बॉन्ड्स योजना में लाभान्वित होने वाला सबसे बड़ा दल भाजपा ही है। इसमें जितना चुनावी फंड मिला उसका ज्यादातर हिस्सा भाजपा के खाते में गया है। विरोधी दलों को जो राशि मिली है वह बहुत कम है।
वर्तमान दौर में किसी भी चुनाव में धन के महत्व व उसकी आवश्यकता से कोई इंकार नहीं कर सकता। पिछले कुछ अरसे से भाजपा ने जैसे चुनाव लड़े हैं उसने देश के चुनावी तौर-तरीकों को बदलकर रख दिया है। पार्टी की सभाओं-सम्मेलनों में भारी-भरकम राशि खर्च होती है। भाजपा के प्रमुख चेहरे यानी नरेन्द्र मोदी की सभाओं की भव्यता और अधिक होती है। उनके रोड शो, रैलियों आदि के साथ विज्ञापनों पर जो अकूत राशि खर्च होती है उससे भाजपा अन्य से आगे निकल जाती है। चूंकि इन दिनों यह तथ्य भी (खर्च वाला) बहुत अहम हो गया है तथा मतदाताओं के लिये मायने रखता है, अत: इसे यह कहकर नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता कि 'केवल पैसे से चुनाव नहीं लड़ा जाता।' यह सच है कि मतदाता के निर्णय की अंतिम कसौटी पैसा नहीं है लेकिन बहुत से ऐसे मद हैं जिन पर धन राशि की ज़रूरत हर पार्टी को पड़ती है।
यात्रा, विज्ञापन, सभाएं, प्रचार सामग्री आदि अपरिहार्य खर्च हैं। धन के बिना किसी भी दल का पिछड़ना स्वाभाविक है। अगर किसी पार्टी के पास उसके प्रयासों से एकत्र की हुई राशि ही न हो तो वह अलग बात है परन्तु कांग्रेस के साथ होता हुआ अन्याय साफ दिखता है कि उसे अपनी ही राशि निकालने नहीं दी जा रही है। फिर, बहुत पुराने मामलों की आड़ में ऐन चुनाव के वक्त पर खातों को फ्रीज़ करना बतलाता है कि भाजपा खर्चों के मामले में बढ़त बनाने के लिये यह षड़यंत्र रच रही है। याद हो कि कांग्रेस ने यह राशि कुछ अरसा पहले क्राउड फंडिंग के जरिये एकत्र की थी। पार्टी के सदस्यों एवं जनसामान्य ने कांग्रेस को आर्थिक मदद की थी। हालांकि वह राशि भी भाजपा के आईटी सेल ने ऑफिशियल वेबसाइट को हैक कर हथियाने की कोशिश की थी।
एक ओर तो प्रमुख विपक्षी दल के पैसे रोके जा रहे हैं दूसरी तरफ देखें तो भाजपा को पैसों की ज़रूरत न केवल चुनाव लड़ने के दौरान वरन बाद में विपक्षी दलों की निर्वाचित राज्य सरकारों को गिराने में भी पड़ती है। इन्हीं पैसों से वह विधायकों व अन्य जनप्रतिनिधियों को खरीदने का काम करती है। यह बात भी अब किसी से छिपी हुई नहीं रह गई है। सम्भवत: भाजपा यह सोचकर ऐसी हरकतों पर उतर आई है कि उससे वह कांग्रेस को परेशान कर सकती है लेकिन वह नहीं जानती कि उसके इसी अलोकतांत्रिक रवैये के कारण विपक्ष उसके ईर्द-गिर्द और मजबूती से संगठित हो रहा है। जनता तो यह सब कुछ देख ही रही है।